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कविता

पल-पल चलो साथ तुम मेरे

शीला पांडे


पल-पल चलो साथ तुम मेरे।
                       
मैं दुलहिन की चूनर लाली
तुम हो सेज-बिछौना।
मैं गोटे की किरन सुनहरी
तुम हो मुकुट रिझौना।
नजर हटे ना इसकी-उसकी
या दिन हो, या साँझ-सवेरे।
                         
मैं मन-उत्सव भीगी नारी
तुम गोरी का गौना।
मैं यौवन के बाग सरीखी
तुम हो भ्रमर किरौना।
सर-सर हवा कान में छेड़े
गुन-गुन फिरो साथ रह मेरे।
                       
मैं निसर्ग की पहली पाती
तुम कवि व्याकुल-छौना।
शरद-पूर्णिमा की मैं रजनी
तुम मुख चंद्र-खिलौना।
लखे चकोर डाह हो मन में
आकर बसो मीत मन मेरे।
                       
मैं शिशु की अधरों की बानी
तुम दो उसके नयना।
मैं लौ-दीप साँझ की, जल में
तुम उर-भाषित बयना।
तट-तट लोग नेह से टोकें
बीच बहो संग मंत्र उकेरे।
 


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